मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ की कोई भी तस्वीर उठा कर देखलो, आपकी आंखे उनकी आँखों पर जाकर जरूर टिकेंगी। वे नशीले मदमस्त नयनों वाले अकेले ऐसे नेता हैं जो 'अंखियों से गोली' मारते हैं। आशा-अमृतावान राजा से लेकर गोरांग प्रिय महाराजा तक सबके सब इनके शिकार हुए पड़े हैं। अब तो मातहत 'सज्जन मंत्री' तक मीडिया के सामने 'दर्दे दिल' खुलकर बयान कर रहे हैं। गजब का जादू है सरकार की निगाह में। हर देखने वाले पर उनके देखने-दिखाने का असर अलग-अलग पड़ता है। दिल्ली के त्रिलोकपुरी और शकरपुर वालों को जहां उनकी नजर 'कातिल' लगती है, वहीं छिंदवाड़ा वालों को 'करूणामयी'। वेतन, बोनस, अनुकंपा नियुक्ति के विनीत आवेदन कर्ताओं को जहां वे 'कमल नयन' दिखते हैं, तो वहीं 'शुद्ध के लिए युद्ध' से पीड़ित और कृद्ध खनन माफिया, मिलावटखोरों को उनकी शनि समान 'वक्रदृष्टि' ही दिखाई देते हैं। आईफा के चक्कर में सलमान संग पहले भोपाल और फिर बाद में अबके 'सूरमा भोपाली' के पहलू में आई पहलू नशीन, नाजनीन और हसीन जेक्लीन फर्नांडीज को उनकी निगाह में जो 'जो कुछ' भी दिखा होगा, उसे तो स्वयं वह ही जानें, पर कैमरे के लैंसों ने उनका एक अलग ही एंगल टीवी, अखबार और सोशलसाईट के जरिये पेश किया। 'अन्नदाता' नाम की बड़ी डिग्री धारण करने वाले 'फटीचर किसान' की निगाह में चुनाव के पहले और अब डेढ़ साल का कांग्रेस-राज देख लेने के बाद 'वो दो लाख माफी वाली बात' को लेकर कमलनाथ की नजर के मायने इतने बदल गए हैं, जितने जमीन और आसमान। जिन बेरोजगारों की आंखो को फोकट के चार हजार घर बैठे दिलाने के सपने खुली आंखों से दिखाए गए थे वे अब इन निगाहों को 'दोगली' करार देने पर उतारू हैं। नजरे इनायत को बेचैन बेरोजगार ठीक वैसे ही तरस रहे हैं, जैसे प्यासा पपीहा स्वाति नक्षत्र में चन्द्रमा की रोशनी में आकाश से गिरने वाली औस की बूंदों के लिए तरसता रहता है। संविदा कर्मियों से लेकर अतिथि प्राध्यापकों तक सबके सब उधर 'कृपा दृष्टि की एक कोर' पाने के लिए टकटकी लगाए बैठें हैं, और इधर कमलनाथ हैं कि टकाटक दिख रहे हैं। अब सूबे के अलबेले सूबेदार ने मध्यप्रदेश को राजस्व घाटे से उबारने के लिए फिर से एक और नया फार्मूला इ इजाद कर लिया है। अब वे अभिजात्य वर्ग की मदिरा प्रेमी भद्र महिलाओं का खानदानी रईसी शौक पूरा कराने की तैयारी कर रहे हैं। मध्यप्रदेश के जबलपुर और ग्वालियर दो महानगरों और दो अन्य पर्यटन क्षेत्रों में कुल मिलाकर चार जगह शराब के चार आऊटलेट (शराबखोरी के अड्डे) खोले जाएंगे। जहां महिलाएं अपने परिचितों (?) के साथ जाकर अपने लिए 'खुद शराब खरीद सकेंगी'। इन आऊटलेट्स पर केवल ऊंचे दाम वाली मदिरा ही उपलब्ध होगी। नशीले नयनों वाले कमलनाथ के इस 'बड़े और कमाऊ ऐलान' से 'बड़े घर की बेटी' और 'वो रहने वाली महलों की' तो काफी खुश हैं, पर देशी भट्टी पर महुआ और यूरिया मिक्स कर उबाल कर तैयार हुई कच्ची शराब पीने वाली 'महुआ की बेटी' उदास है। वह उम्मीद भरी निगाह से कमलनाथ की निगाहों को टटोल रही है कि उसके लिए 'पन्नी-प्लॉजा' कब खोला जाएगा? हिन्दी के प्रख्यात कवि और व्यंग्यकार तथा मेरे लिए व्यक्तिगत रूप से आदर्श दिल्ली निवासी श्री अशोक चक्रधर ने कभी कहा था- ''कुर्सी 'अक्रूर' की किसी क्रूर तक न जाए, नेता सुराही, हुस्न-ओ-हूर तक न जाए'... अब श्रीमान् ने ऐसा क्यों कहा था? यह समझने की मेरी कोशिश लगातार जारी है, जिस दिन ठीक से समझ जाऊंगा, आपको भी जरूर बताऊंगा, फिलहाल तो यही कहूंगा कि-इन नशीले नयनों की बलिहारी ओ मोरी मय्या... आप भी कोशिश करें उनकी नजर और नजरों के इशारों को समझने की, क्योंकि- नजरें बदलते ही नजारे और किनारे सब बदल जाते हैं। आपका दिन क्या, सारा जीवन ही शुभ हो! -------------------------------------------------
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-राजेश सत्यम